कहानी

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"हेलो!सर,हमारे यहां एक 8 साल की बच्ची का रेप हो गया।और लड़की की हत्या भी कर दी गई है। खबर ब्रेक कर दीजिए।थोड़ी देर में पूरी खबर भेजता हूँ."सुदूर गांव के एक रिपोर्टर प्रभात ने डेस्क में फोन कर खबर लिखाई।
उधर से सम्पादक की आवाज़ आती है"प्रोफाइल!प्रोफाइल क्या है उस लड़की का?नाम क्या है उसका?
"प्रोफाइल?मतलब सर!"रिपोर्टर के लिए ये नई चीज थी।
"अरे यार! वो लड़की किस खानदान की है।किस धर्म की है और एक व्यक्ति ने रेप किया या फिर गैंग रेप हुआ है।"संपादक ने पूरी परिभाषा बता दी।
"सर,है तो बहुत साधारण लड़की,नाम उसका तबस्सुम है.गैंगरेप का तो पता नहीं लेकिन उसकी स्थिति देखकर तो यही लगता है'।रिपोर्टर को लगा उसकी सारी मेहनत बेकार हो गयी।खबर नही चली तो उसे पैसे भी नहीं मिलेंगे।
"क्या! क्या नाम बताया, तबस्सुम!एक्सीलेंट! अब बताओ स्पॉट क्या हैं। हिन्दू बस्ती थी या फिर कोई आसपास में मन्दिर? संपादक के दिमाग मे प्लॉट रचने लगा था।
"जी गांव में एक मंदिर है उससे कुछ दूर जंगल में लाश मिली है।" बस हो गया काम। संपादक चिल्लाया,रमेश खबर ब्रेक करो -"मन्दिर में एक मुस्लिम बच्ची के साथ गैंगरेप। मन्दिर के पुजारी पर भी शक।" और हाँ फलां-फलां गेस्ट को बुला लो लाइव के लिए।
"सुनो प्रभात!खबर को इस तरह से शूट करो कि लगे मन्दिर के अंदर रेप हुआ और लोगों ने लड़की की हत्या कर जंगल मे लाश फेंक दी।"संपादक खुद चैनल में सजधज कर एंकरिंग करने बैठ गया-आज की सबसे बड़ी खबर!!मन्दिर में मुस्लिम लड़की के साथ गैंगरेप के बाद हुई हत्या।हम सीधे चलते हैं अपने संवाददाता प्रभात के पास।
पूरे देश में इस खबर से आग लग चुकी थी। चूंकि मामला एक धर्म विशेष का था,नेताओं की गन्दी सियासत शुरू हो गयी। सेक्युलरिज्म उफ़ान पर आ गया। बुद्धिजीवियों ने अपने अपने अवार्ड वापसी की घोषणा कर दी। देशभर में मानो तूफ़ान मच गया। आधीरात को लोग मोमबत्ती जलाकर शहरों में निकल पड़े। पीड़ित परिवार से मिलने बड़े बड़े नेता उसके घर पहुचने लगे। उसे मीडिया और अन्य लोगो से किस तरह बात करनी है ये भी समझाते।राजनीति के गुर सिखाते। तब्बसुम के अब्बा भौचक थे।" अरे हम तो उस गांव में सभी एक परिवार से रहते हैं कोई धर्मभेद नहीं। एक दूसरे के सुखदुःख में साथ होते हैं। और इस घटना में भी गांव के हिन्दू भाइयों ने ही सबसे अधिक मदद की।"
"अरे चुप रहो!फिर कोई तुम्हारी मदद करने नहीं आएगा।अपनी लड़ाई खुद लड़ना".सियासत की रोटी सेकने आये एक नेता ने उसे झिड़क दिया।
उधर पुलिस ने छानबीन शुरू की तो गांव के कुछ दबंग लोगों के नाम सामने आए जिसमे दो हिन्दू और तीन मुस्लिम थे। पुलिस,मीडिया और प्रशासन पर प्रशासन पर मामले को दबाने का प्रेशर बढ़ने लगा। सबों ने बस इसे हिन्दू-मुस्लिम एंगल से देखना शुरू कर दिया। दबंगई अपना काम कर गयी और लोग दो धर्मों की जंग लड़ने लगे। तबस्सुम के शव का पोस्टमार्टम कर दफना दिया गया और उसके परिवार वाले सियासती चक्कर में पीसने लगे। न तो दोषियो को सजा मिली और न ही तब्बसुम को इंसाफ। हां इस घटना के बाद गांव की आवोहवा बदल गयी। जो कभी भाई भाई से रहते थे उनके बीच दुश्मनी की नींव पड़ गई।
राजनीतिक दल दूसरे मुद्दों की तलाश में जुट गए और मीडिया के लिए तब्बसुम की खबर बासी हो गयी थी।
©पंकज प्रियम
17.4.2018

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