कविता

 चोट
धूल चटा दो उस बोली को, जो देश विरोधी बात करे।
भारत की रोटी खाकर, जो भारत से ही प्रतिघात करे।
कुचल डालो फ़न उसका, जो ज़हर उगल के घात करे।
आस्तीनों में छुपकर हरदम, जो भीतर-भीतर घात करे।
हुआ नहीं जो देश का अपना, क्यूँ उसपर विश्वास करें।
देश तोड़ने की इच्छा रखता, क्यूँ उसकी हम आस करें।
हुआ नहीं जो धर्म का अपना, क्या करेगा पूरा सपना।
अपसंस्कृतिओं का जो वाहक, कब होगा तेरा अपना।
मुग़ल, ब्रिटिश या यूनानी, संस्कारों पर ही वार किया।
नजऱ गड़ाई मन्दिरों पर, हमला सबने हर बार किया।
हमें लड़ाकर आपस में ही, यहाँ वर्षों तक राज किया।
लूट ले गए धन वो सारे, नहीं हमारा कुछ काज किया।
आज़ाद कर गये फिरंगी पर, अंदर ही अंदर तोड़ गये
कुटिल सियासत की रियासत, यहीं पर वह छोड़ गये।
आ गया फिर वक्त वही, फिर से इतिहास दोहराना है।
वोट का अब चोट देकर, सब जयचन्दों को हराना है।
बुज़दिलों की यह धरा नहीं, लिखा इतिहास है वीरों ने।
हर दुश्मन को धूल चटायी, सदा भारत के शूरवीरों ने।
आया लुटेरा बाबर चाहे, काना ख़िलजी या फिर गोरी
छक्के छुड़ाये हमने सबके, करनी चाही जिसने चोरी।
वीर शिवा की धरती है ये, महाराणा प्रताप की भूमि है।
झाँसी की रानी से थर्राये, अंग्रेज़ो ने यह माटी चूमि है।
जब टिका नहीं ग्रेट सिकन्दर, क्या औकात तुम्हारी है।
धूल चटा दूँ अब मत से तुझको, यह औकात हमारी है।

©पंकज प्रियम
29/04/2019

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